Poems

इज्जत और नाक (Izzat Aur Naak)

*This article is solely based on my thoughts and does not want to hurt the sentiments of any group of people in the society*

ज़िन्दगी में इंसान के पास एक वक्त ऐसा जरूर आता है

जिसमे उसके पास दो रास्तों में से एक को चुनना पर जाता है

गलत नहीं होते वो दोनों रास्ते

बस दो जिंदगी हो जाती हैं वो दोनों रास्ते

एक जिस में तुम खुश हो

और एक जिस में तुम्हें छोर के सब कोई खुश हो

बात ये नहीं कि परिणाम क्या होगा ये सब का,

बात ये है की तुम अपने फैसले से कुछ बदल पाओगे क्या?

अगर तुम्हारे फैसले से तुम्हारे परिवार का भला होता है, तो सही है

लेकिन अगर एक निर्णय से आने वाली पीढ़ी का भला हो,

तो किस्से सहमत रहोगे तुम?

एस समाज के एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू को अगर हम देखें

तो वो है बेटे का एस समाज में योगदान,

ना ना, मैंने बेटियों की बात ही नहीं की

बेटियों का योगदान तो समाज तय करता है,

बेटियां खुद थोड़ी करती है

इसलिए बेटों का योगदान

बेटें मां से बहुत प्यार करते हैं

लेकिन ये भी सही समझते हैं,

की माँ अगर बाप के साथ घुट घुट के रह रही है

तओ उसी में उनकी खुशी है शायद

दिक्कत मां को भी नहीं है

आज झगड़ा, तो कल मान भी तो जाति है ना,

किस रिश्ते में झगड़ा नहीं होता

बेटा बड़ा हो गया है, बहू आने वाली है, बूढ़े हो गए हो

ऐसे ही झगड़ा होता है मां बाप के बीच

सही बात ह

किस मियां बीवी में झगड़ा नहीं होता

लेकिन बात झगड़े की नहीं है

बात ये है, की बेटें माँ को घुट ता और बाप को गुस्सा करता देख

ये समझ लेता है

की समाज में माँ ऐसी होती हो

माँ बलिदानी होती है

माँ बच्चों और परिवार के लिए जीती है

बस माँ यूँही होती हो

क्योंकि जब तक माँ चुप है,

तब तक ही तो सब की जिंदगी अच्छी चलती है,

कभी देखा है की जिस घर में मां बोलती ह, वो घर अच्छे से निभते हुए

ना,

बहुत कम ही ऐसे उदाहरण होंगे

क्या करे ये चीज समाज के जद में ऐसी समायी हुई है

की उससे कभी काटा नहीं जा सकता

और अगर कट भी गया

तो जड़ कभी नहीं कट ते

जो घाओ बनकर और दुख देते है

ये बरसो से चला आने वाला प्रथा,

ठीक है चलो…. सही है

बरसो से सिर्फ औरतों को ही सेहना पड़ता है

सब जानते हैं

माँ हर गम सहती हो

ये भी सही हो

लेकिन एन सब में बस एक सोच खराब हो

हमारे आने वाली पीढ़ी के बेटे

क्या गल्ती है उन लोगो की

क्यू हम उन लोगो को इस गलत शिक्षा का शिकार बना रहे है

क्यू हम उन लोगो को भी वही करने का प्रोत्साहन दे रहे हैं

जो सदियों पेहले के आदमी किया करते थे

फिर सवाल जवाब वहीँ

हर आदमी बुरा नहीं होता

हर औरत पीड़ित का शिकार नहीं होता

गलतियाँ औरतें भी करती हैं

और मर्द भी करते हैं

लेकिन अगर बहुमत देखा जाए तो मेरी बात कहीं न कहीं सच लगेगी

आज जब झगड़ा करते वक्त मैंने भाई से कहा

मां ने भी किया था अरेंज मैरिज,

फिर वो तो घुट घुट के रहती है

तो क्या सोच कर केह रहे हो की अरेंज मैरिज ही हमेशा सही होता है

इस बात पर उसने कहां

की हां मां घुट के रहती है, लेकिन उसमे ही उनको खुशी मिलती ज

सब ठीक हुआ,

ये बोल के भाई ने मेरा डिफेंड कर दिया,

ये सुन के मां ने भी हां में हां मिला दी

फिर मैं कौन होती हूं बीच में बोलने वाली

बस दुख मुझे इस बात का रह गया

की क्या कभी एस चिज में बदलाव आएगा

औरत हमेशा घुट्टे आई ह, तो क्या हमेशा ही घुट ते रहेगी

क्या यही किस्मत होती है हर औरत की

माँ अगर सुन के चुप है तो भोलेनाथ की कृपा से सब सही हो

लेकिन जहां मां ने झगड़ा किया, वो तो मां रहती ही नहीं

फिर उसके कर्तव्य पे बात आ जाती है, आचरण पे बात आ जाती है

माँ लोगो को अगर छोड़ कर, 

सारे औरत समाज की ही बात की जाये

तो जहान उन लोगो ने आवाज उठाई,

फट से उनके आचरण पे बात ला दो

तकी आधी हिम्मत उन लोगो की वहीं खत्म हो जाए

मैं पूछती हू,

ये आचरन क्या होता है

और क्या ये एक ऐसी चीज़ है

जो सिर्फ औरतों को दी गई है

में तो बोलती हूँ

की जब लड़की पैदा होती है

तो ये कह के ढिंढोरा लोग क्यू नहीं पिट ते

की अरे देखो, इज्जत पैदा होई है

मेरे घर का नाक पाया हुआ हो

गलत कहा क्या

ऐसा होना चाहिए,

हम औरतों को इंसान क्यों बनाया गया, नहीं पता,

काश भगवान एक अलग श्रेणी हम औरतों के लिए बनाते

जिस्का नाम होता “इज्जत और नाक”

मर्द की तरह हम लोगो के नाम नहीं होते,

बस भूमिका दी जाति

की अभी मुझे बेटी रहना है घर में,

फिर 18 साल के बाद, बहू बन जाना के किसी घर की

बीवी बन जाना ज, फिर मां… फिर खतम

यही होता तो शायद अच्छा होता:

न इच्छा जागती, न अरमान होते, और न तड़पना पड़ता

खैर अब गल्ती हुई है, तो चुप रहने वाले में से हम औरतें तो है नहीं

अब भगवान ने हमे इन्सान ही बना दिया,

तो इंसानो की तरह हमें भी तो रहना ही परेगा

बात खतम नहीं हुई है यहां पे

एक ध्वनि ही धीरे धीरे आवाज बनती है

जरुरी नहीं है हर कोई उसे सुन्ने

बस जितने भी सुने

चुप मत रहना

तुम्हारे एक कदम आगे बढ़ाने से,

समाज तो पिछे बोलेगा ही

हो सकता है माँ बाप से भी रिश्ता टूट जाए

बहुत दुख होगा,

लेकिन कभी कभी खुद पे शक भी होने लगेगा

बस विश्वास रखना,

और अपनी मंजिल पर ध्यान देना

पता है मुझे, कुछ कुछ दाग जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ते

लेकिन हर कोई अब साफ़ कपड़े भी तो हमेशा नहीं पहन सकता न

तुम कुछ भी कर लो

औरत पैदा होने पे तुम्हे दस लोग पीछे से बोलेंगे ही

आज नहीं बोल रहे, कभी और बोलेंगे

फैसला तुम्हें लेना होगा

की किस चिज के लिए तुम्हें सुन्ना मंजूर हो

समाज नहीं बदलना,

बस अगर एक इंसान या एक पीढ़ी की सोच भी बदल सको,

तो बहुत कर लिया तुमने

और जो माये चुप रह जाति है जिंदगी भर

उनके लिए ये संदेश

की कभी आगे बढ़ के देखना आप लोग,

चिंगाडी लगा के तो देखना

आगर आग लग जाए तो भी ठीक

नहीं तो धुए से किसी ना किसी की मौत तो हो ही जाएगी

*This article is solely based on my thoughts and does not want to hurt the sentiments of any group of people in the society*

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